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आदिन्मा॒तॄरावि॑श॒द्यास्वा शुचि॒रहिं॑स्यमान उर्वि॒या वि वा॑वृधे। अनु॒ यत्पूर्वा॒ अरु॑हत्सना॒जुवो॒ नि नव्य॑सी॒ष्वव॑रासु धावते ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ād in mātṝr āviśad yāsv ā śucir ahiṁsyamāna urviyā vi vāvṛdhe | anu yat pūrvā aruhat sanājuvo ni navyasīṣv avarāsu dhāvate ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आत्। इत्। मा॒तॄः। आ। अ॒वि॒श॒त्। यासु॑। आ। शुचिः॑। अहिं॑स्यमानः। उ॒र्वि॒या। वि। व॒वृ॒धे॒। अनु॑। यत्। पूर्वा॑। अरु॑हत्। स॒ना॒ऽजुवः॑। नि। नव्य॑सीषु। अव॑रासु। धा॒व॒ते॒ ॥ १.१४१.५

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:141» मन्त्र:5 | अष्टक:2» अध्याय:2» वर्ग:8» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:21» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (यासु) जिन (नव्यसीषु) अत्यन्त नवीन और (अवरासु) पिछली ओषधियों के निमित्त (नि, धावते) निरन्तर शीघ्र जाता है वा (यत्) जो (सनाजुवः) सनातन वेगवाली (पूर्वाः) पिछली ओषधियों को (अनु, अरुहत्) बढ़ाता है वह उन ओषधियों में (आ, शुचिः) अच्छे प्रकार पवित्र और (अहिंस्यमानः) विनाश को न प्राप्त होता हुआ (उर्विया) बहुत प्रकार (विवावृधे) विशेषता से बढ़ता है (आत्) इसके पीछे (इत्) ही (मातॄः) माता के समान मान करनेवाली ओषधियों को (आ, अविशत्) अच्छे प्रकार प्रवेश करता है ॥ ५ ॥
भावार्थभाषाः - जो पुरुष वैद्यक विद्या को पढ़, बड़ी-बड़ी ओषधियों का युक्ति के साथ सेवन करते हैं, वे बहुत बढ़ते हैं। ओषधी दो प्रकार की होती हैं अर्थात् पुरानी और नवीन। उनमें जो विचक्षण चतुर होते हैं, वे ही नीरोग होते हैं ॥ ५ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

ये यासु नव्यसीष्ववरास्वोषधीषु निधावते यद्यस्सनाजुवः पूर्वा ओषधीरन्वरुहत् स तास्वाशुचिरहिंस्यमानः सन् उर्विया विवावृध आदिन्मातॄराविशत् ॥ ५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आत्) आनन्तर्य्ये (इत्) एव (मातॄः) मातृवन्मान्यप्रदा ओषधीः (आ) (अविशत्) विशति (यासु) (आ) (शुचिः) (अहिंस्यमानः) अहिंसितः सन् (उर्विया) बहुना (वि) (वावृधे) वर्द्धते। अत्र तुजादीनामित्यभ्यासदैर्घ्यम्। (अनु) (यत्) यः (पूर्वाः) (अरुहत्) वर्धयति (सनाजुवः) सनातनी जूर्वेगो यासां ताः (न) (नव्यसीषु) अतिशयेन नवीनासु (अवरासु) अर्वाचीनासु (धावते) सद्यो गच्छति ॥ ५ ॥
भावार्थभाषाः - ये पुरुषा वैद्यकविद्यामधीत्य महौषधानि युक्त्या सेवन्ते ते बहु वर्द्धन्ते। ओषधयो द्विविधा भवन्ति प्राक्तना नवीनाश्च तासु ये विचक्षणा भवन्ति त एवारोगा जायन्ते ॥ ५ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे पुरुष वैद्यक विद्या शिकून महाऔषधींचे युक्तीने सेवन करतात त्यांची उन्नती होते. औषधी दोन प्रकारची असतात. एक जुनी व दुसरी नवीन. त्यात जे विलक्षण चतुर असतात ते निरोगी राहतात. ॥ ५ ॥